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सौ रुपयों के चैक को नेत्रहीन व्यक्ति निरर्थक समझता है और चिकने कागज के टुकड़ों को मूल्यवान। इसी प्रकार अबोध बालक भी सस्ते खिलौने को मूल्यवान पुस्तक से अधिक पसन्द करता है। वास्तव में यही दशा आज विश्व के असंख्य स्त्री-पुरुषों की है वे आवश्यकताओं का उचित मूल्यांकन करना भी नहीं जानते। क्या आप अपनी महत्वपूर्ण आवश्यकताओं से परिचित हैं?
लेखक के अनुसार प्राथमिक महत्व की बातों से अनभिज्ञ रहने के कारण जीवन निरर्थक हो जाता है। यदि आप अपने जीवन को सार्थक बनाना चाहतें हैं तो इस पुस्तक को पड़ने से न चूकें।
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